ائے میرے افضل پیاؒ جی کیا کروں؟ کیا نہ کروں؟
جی نہیں لگتا کہیں بھی تو ہی بتا کیسے جیوں؟
ائے میرے مرشد پیا جی کیا کروں؟ کیا نہ کروں؟
ऐ मेरे अफ़ज़ल पिया जी क्या करूं? क्या न करूं?
जी नहीं लगता कहीं भी तूही बता कैसे जिऊं?
ऐ मेरे मुर्शिद पिया जी क्या करूं? क्या न करूं?
کیا شریعت؟ کیا طریقت؟ تزکیہ کیا تصفیہ؟
کیا طریقۂ مولویت؟ کیا رَوشِ اصفیاء؟
میں نے تو بس تجھکو چاہا، تجھ پہ جیوں تجھ پہ مروں۔۔
क्या शरीअत? क्या तरीक़त? तज़्किया क्या तस्फ़िया?
क्या तरीक़ा ए मौलवियत? क्या रविशे अस्फ़िया?
मैंने तो बस तुझको चाहा, तुझपे जिऊं तुझपे मरूं।।
کیا خلافت؟ کیا اجازت؟ کیا ولایت قطبیت؟
اپنی زندہ باد محبت تیری ہے کافی انسیت۔
شیخ صاحب، پیر صاحب، میں تو نہ ہرگز بنوں۔۔
क्या ख़िलाफ़त? क्या इजाज़त? क्या विलायत क़ुतबियत?
अपनी ज़िन्दाबाद मोहब्बत तेरी है काफ़ी उनसियत।
शैख़ साहब, पीर साहब मैं तो न हरगिज़ बनूं।।
کارہائے دین و دنیا کا ہے تجھ پر ہی مدار،
کچھ خودی باقی نہیں ہے بس خدا پر انحصار۔
میں نہیں ہوں تو وہی ہے کیا کہوں؟ کیا نہ کہوں؟؟
कारहाए दीनो दुनिया का है तुझ पर ही मदार,
कुछ ख़ुदी बाक़ी नहीं है बस ख़ुदा पर इन्हिसार।
मैं नहीं हूं तो वही है क्या कहूं? क्या न कहूं??
تذکرۂ عشق و حُسن ہی ٹھیک لگتا ہے مجھے،
دل تڑپ جائے لرز جائے کوئی ایسا ملے۔
کوئی تو ایسا حُسنِ پیکر کردے مجھکو سرنگوں۔۔
तज़्किरा ए इश्क़ ओ हुस्न ही ठीक लगता है मुझे,
दिल तड़प जाए लरज़ जाए कोई ऐसा मिले।
कोई तो ऐसा हुस्ने पैकर करदे मुझको सर नगुं।।
ہے گزارش آپ سے بس لاج رکھ لینا میرا،
آخرت میں یہ میاں معراؔج ہے کہہ دینا میرا،
میں یہ چاہوں کہ وہاں بھی آپؒ ہی کے سنگ رہوں۔۔
है गुज़ारिश आप से बस लाज रख लेना मेरा,
आख़िरत में ये मियां “मेराज” है कह देना मेरा।
मैं ये चाहूं कि वहां भी आप ही के संग रहूं।।
ربّ ارنی برق تجلی یا شبِ معراج ہو،
معاملاتِ عشق ہو یا غمزہ حُسنِ ناز ہو۔
اپنا اپنا ہے لطیفہ ائے معراؔج کیا کروں؟؟
ائے میرے افضل پیاؒ جی کیا کروں؟ کیا نہ کروں؟
रब्बे अरनी बर्क़ तज्जली या शबे मेराज हो,
मामलाते इश्क़ हो या ग़मजा हुस्न नाज़ हो
अपना अपना है लतीफ़ा ऐ “मेराज” क्या करूं??
ऐ मेरे अफ़ज़ल पिया जी क्या करूं? क्या न करूं?
کلام :- معراؔج افضلی
پیشکش :- مرکزِ افضلیہ ایجوکیشن ٹرسٹ
نوادا بہار (انڈیا)
कलाम :- मेराज अफ़ज़ली
पेशकश :- मरकज़ ए अफ़ज़लिया ऐजुकेशन ट्रस्ट
नवादा बिहार (इण्डिया)