علم بڑا ہے معرفت، عمل بڑا ہے بس فنا۔
قرباں کرکے اپنی ہستی، بول معراؔج انا انا۔
इल्म बड़ा है मार्फ़त, अमल बड़ा है बस फ़ना,
क़ुर्बां करके अपनी हस्ती, बोल ‘मेराज’ अना अना।
مُلّا صوفی نہ بنو، جاہل بننا چاہئے،
عالم عامل نہ بنو، کامل بننا چاہئے۔
چھوڑ کے سارے علم و عمل، کر دینا ہستی کو فنا،،
قرباں کرکے اپنی ہستی، بول معراؔج انا انا۔
मुल्ला सूफ़ी ना बनो, जाहिल बनना चाहिए,
आलिम आमिल ना बनो, कामिल बनना चाहिए।
छोड़ के सारे इल्मो अमल, कर देना हस्ती को फ़ना,,
क़ुर्बां करके अपनी हस्ती, बोल ‘मेराज’ अना अना।
فقر و فاقہ نہ کوئی، شاہ سکندر چاہئے،
عارف کامل حالِ ولی مست قلندر چاہئے۔
چاہے رہنا حال میں جیسے، بےنفس و بیخود رہنا،،
قرباں کرکے اپنی ہستی، بول معراؔج انا انا۔
फ़क़रो फ़ाक़ा ना कोई, शाह सिकंदर चाहिए,
आरिफ़ कामिल हाले वली, मस्त क़लंदर चाहिए।
चाहे रहना हाल में जैसे, बे-नफ़्स ओ बे-ख़ुद रहना,,
क़ुर्बां करके अपनी हस्ती, बोल ‘मेराज’ अना अना।
بےنفسی کو ائے معراؔج، ٹھیک سمجھنا چاہئے،
ترکِ دنیا کرکے بھی، دنیا میں جینا چاہئے۔
قلب میں اپنے نفس لعیں کو، بالکل نہ جگہ دینا،،
قرباں کرکے اپنی ہستی، بول معراؔج انا انا۔
बे-नफ़्सी को ऐ “मेराज”, ठीक समझना चाहिए,
तर्के दुनिया करके भी, दुनिया में जीना चाहिए।
क़ल्ब में अपने नफ़्से लईं को बिल्कुल ना जगह देना,,
क़ुर्बां करके अपनी हस्ती, बोल ‘मेराज’ अना अना।
इल्म बड़ा है मार्फ़त, अमल बड़ा है बस फ़ना।।
کلام :- معراؔج افضلی
پیشکش :- مرکزِ افضلیہ ایجوکیشن ٹرسٹ
نوادا بہار (انڈیا)
कलाम :- मेराज अफ़ज़ली
पेशकश :- मरकज़ ए अफ़ज़लिया ऐजुकेशन ट्रस्ट
नवादा बिहार (इण्डिया)