Natiya Kalam | Jab Mere Aaqa Ka Darshan Hoga | Kalam Meraj Afzaly

جب میرے آقاؐ کا درشن ہوگا، نورانی میرا تن من ہوگا۔ خوشبو سے معطّر دامن ہوگا، جب میرے آقاؐ کا درشن ہوگا۔

जब मेरे आक़ा का दर्शन होगा, नूरानी मेरा तन मन होगा। ख़ुशबू से मुअत्तर दामन होगा। जब मेरे आक़ा का दर्शन होगा।।

اُن کے قدموں پر میں تو سر اپنا جھکاؤں گا۔ کتنے ہیں عزیز وہ، دل چیر کر دکھاؤں گا۔ چرنوں میں ہستی میری ارپن ہوگا۔ نورانی میرا تن من ہوگا۔

उनके क़दमों पर मैं तो सर अपना झुकाऊंगा। कितने हैं अज़ीज़ वो दिल चीर कर दिखाऊंगा। चरणों में हस्ती मेरी अर्पण होगा। नूरानी मेरा तन मन होगा।

پھر تو سر پہ ہاتھ رکھ کے مجھکو وہ اٹھائیں گے۔ باہوں میں وہ لے لیں گے، گلے سے لگ جائیں گے۔ کتنا ہی سُندر وہ چھن ہوگا۔ نورانی میرا تن من ہوگا۔

फिर तो सर पे हाथ रख के मुझको वो उठाएंगे। बाहों में वो ले लेंगे गले से लग जाएंगे। कितना ही सुन्दर वो क्षण होगा। नूरानी मेरा तन मन होगा।

تب تو اس معراؔج کو معراج ہو ہی جائے گا۔ یار کے دل میں اسکا، راج ہو ہی جائے گا۔ سب دھن سے بڑھ کر وہ دھن ہوگا۔ نورانی میرا تن من ہوگا۔ جب میرے آقاؐ کا درشن ہوگا، نورانی میرا تن من ہوگا۔ خوشبو سے معطّر دامن ہوگا، جب میرے آقاؐ کا درشن ہوگا۔

तब तो इस “मेराज” को मेराज हो ही जाएगा। यार के दिल में इसका राज हो ही जाएगा। सब धन से बढ़ कर वो धन होगा। नूरानी मेरा तन मन होगा। जब मेरे आक़ा का दर्शन होगा, नूरानी मेरा तन मन होगा। ख़ुशबू से मुअत्तर दामन होगा। जब मेरे आक़ा का दर्शन होगा।

کلام :- معراؔج افضلی پیشکش :- مرکزِ افضلیہ ایجوکیشن ٹرسٹ कलाम :- मेराज अफ़ज़ली पेशकश :- मरकज़ ए अफ़ज़लिया ऐजुकेशन ट्रस्ट

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