Namaz Ki Haqeeqat | Kya Zikr Karun Ahle Shariyat Namaz Ki | Kalam Meraj Afzaly

★★★ نماز کی حقیقت ★★★
★★★ नमाज़ की हक़ीक़त ★★★

کیا ذکر کروں اہل شریعت نماز کی؟
الله جانتا ہے حقیقت نماز کی۔

क्या ज़िक्र करूँ अहले शरीअत नमाज़ की?
अल्लाह जानता है हक़ीक़त नमाज़ की!

پیش آئی جو خدا کو ضرورت نماز کی،
ظاہر کی محمد ﷺ کو بصورت نماز کی۔

पेश आई जो ख़ुदा को ज़रूरत नमाज़ की,
ज़ाहिर की मोहम्मद को बसूरत नमाज़ की!

نماز ذکرِ رب ہے، الله کی ہے یاد،
سنبھال سکے کون یہ دولت نماز کی؟

नमाज़ ज़िक्रे रब है, अल्लाह की है याद,
संभाल सके कौन ये दौलत नमाज़ की?

کٹتا ہے جو سر سجدے میں تو ہوتی ہے مقبول،
واللہ گراں کتنی ہے قیمت نماز کی۔

कटता है जो सर सज्दे में तो होती है मक़बूल,
वल्लाह गिराँ कितनी है क़ीमत नमाज़ की।

مقصد حیات کہتے ہیں جسکو وہ ہے نماز،
دل کو لگانی چاہئے عادت نماز کی۔

मक़सद हयात कहते हैं जिसको वो है नमाज़,
दिल को लगानी चाहिए आदत नमाज़ की।

تیری نماز اور ہے میری نماز اور،
بیشک الگ الگ ہے صورت نماز کی۔

तेरी नमाज़ और है मेरी नमाज़ और,
बेशक अलग-अलग है सूरत नमाज़ की।

سن لے نماز پڑھنے سے قائم نہیں ہوگی،
پہچان لو اب تم بھی یہ فطرت نماز کی۔

सुन ले नमाज़ पढ़ने से क़ायम नहीं होगी,
पहचान लो अब तुम भी ये फ़ितरत नमाज़ की।

میری نماز قائم ہے فطرت میں بسی ہے،
مخلوق کو ہے پہلے ضرورت نماز کی۔

मेरी नमाज़ क़ायम है फ़ितरत में बसी है,
मख़लूक को है पहले ज़रुरत नमाज़ की।

سن لے نماز کیا ہے؟ رازِ خدائے پاک،
محرم پہ کھل گئی ہے حقیقت نماز کی۔

सुन ले नमाज़ क्या है? राज़ ए ख़ुदा ए पाक,
महरम पे खुल गयी है हक़ीक़त नमाज़ की।

نازل کیا خدا نے فقط ذکر اور نماز،
اور وہ ہی کر رہا ہے حفاظت نماز کی۔

नाज़िल किया ख़ुदा ने फ़क़त ज़िक्र और नमाज़,
और वो ही कर रहा है हिफ़ाज़त नमाज़ की।

اللہ کا کلام ہے کیا؟ ذکر ہی تو ہے،
قرآن کر رہا ہے ہدایت نماز کی۔

अल्लाह का कलाम है क्या? ज़िक्र ही तो है,
क़ुरआन कर रहा है हिदायत नमाज़ की।

حاصل ہوا عرفان تو قائم ہوئی نماز،
پھر کچھ نہیں ہے باقی ضرورت نماز کی۔

हासिल हुआ इरफ़ान तो क़ायम हुई नमाज़,
फिर कुछ नहीं है बाक़ी ज़रुरत नमाज़ की।

وہ نور جسے رب نے کیا پہلے ہی جدا،
وہ ذِکر و ذَکر ہے وہی فطرت نماز کی۔

वो नूर जिसे रब ने किया पहले ही जुदा,
वो ज़िक्र ओ ज़कर है वही फ़ितरत नमाज़ की।

ہستی ہماری کیا ہے؟ سراپا نماز ہے،
میرے سوا نہیں ہے حقیقت نماز کی۔

हस्ती हमारी क्या है? सरापा नमाज़ है,
मेरे सिवा नहीं है हक़ीक़त नमाज़ की।

پایا جو نہیں حق کو قضا ہو گئی نماز،
علم اور آگہی ہے رکعت نماز کی۔

पाया जो नहीं हक़ को कज़ा हो गयी नमाज़,
इल्म और आगही है रिक़अत नमाज़ की।

میری نماز اب تو قضا ہو نہیں سکتی،
فطرت میں بس گئی ہے وہ فطرت نماز کی۔

मेरी नमाज़ अब तो कज़ा हो नहीं सकती,
फ़ितरत में बस गयी है वो फ़ितरत नमाज़ की।

نماز ہی معراج ہے وصلت خدا کی ہے،
واللہ بےمثال ہے عظمت نماز کی۔

नमाज़ ही मेराज है वसलत ख़ुदा की है,
वल्लाह बे मिसाल है अज़मत नमाज़ की।

محرمِ راز نہ ہو تو نیت ہے نہ وضو،
تعلیمِ معرفت میں ہے حکمت نماز کی۔

महरम ए राज़ ना हो तो निय्यत है ना वज़ू,
तालीम ए मार्फ़त में है हिकमत नमाज़ की।

پیدا ہوئے نماز سے نماز کے لئے،
دنیا نماز کی ہے اور جنت نماز کی۔

पैदा हुए नमाज़ से नमाज़ के लिए,
दुनिया नमाज़ की है और जन्नत नमाज़ की।

گو حسن بھی نماز ہے عاشق بھی ہے نماز،
دونوں میں ہے موجود محبت نماز کی۔

गो हुस्न भी नमाज़ है आशिक़ भी है नमाज़,
दोनों में है मौजूद मोहब्बत नमाज़ की।

ہوتی نہ جو نماز تو ہوتا نہ کائنات،
مخلوق ہے نماز سے خلقت نماز کی۔

होती ना जो नमाज़ तो होता ना क़ायनात,
मख़लूक़ है नमाज़ से ख़िलक़त नमाज़ की।

اللہ نے دیا ہے سبھی کو ہنر نماز،
دل میں چھپی ہے سب کے محبت نماز کی۔

अल्लाह ने दिया है सभी को हुनर नमाज़,
दिल में छुपी है सबके मोहब्बत नमाज़ की।

یہ بات اور ہے کہ نہ سمجھا ہے تو اسے،
روزِ ازل سے ہی ہے حکومت نماز کی۔

ये बात और है कि ना समझा है तू इसे,
रोज़ ए अज़ल से ही है हुक़ूमत नमाज़ की।

نماز ہمیشہ سے ہے ہمیشہ رہےگی،
ہوگی نہیں کبھی بھی قیامت نماز کی۔

नमाज़ हमेशा से है हमेशा रहेगी,
होगी नहीं कभी भी क़यामत नमाज़ की।

سچائی محبت ہے، محبت نماز ہے،
وحدت نماز کی ہے رسالت نماز کی۔

सच्चाई मोहब्बत है, मोहब्बत नमाज़ है,
वहदत नमाज़ की है रिसालत नमाज़ की।

میں کیا پڑھوں نماز کہ میں خود نماز ہوں،
ہستی نماز ہے میری صورت نماز کی۔

मैं क्या पढूं नमाज़ कि मैं खुद नमाज़ हूँ,
हस्ती नमाज़ है मेरी सूरत नमाज़ की।

وہ نورِ محمد ﷺ ہی مکمل نماز ہے،
لو کھل گئی ہے آج حقیقت نماز کی۔

वो नूर मोहम्मद ही मुकम्मल नमाज़ है,
लो खुल गयी है आज हक़ीक़त नमाज़ की।

نورِ محمدی ﷺ کو کرو اپنی جلوہ گر،
دکھ جائے گی پھر تمکو وہ صورت نماز کی۔

नूरे मोहम्मदी को करो अपनी जलवा गर,
दिख जायेगी फिर तुमको वो सूरत नमाज़ की।

جلوہ گری جو چاہو تو ہستی کو چھوڑ دو،
بچ جائیگی پھر جو بھی وہ ہے مورت نماز کی۔

जलवा गरी जो चाहो तो हस्ती को छोड़ दो,
बच जायेगी फिर जो भी वो है मूरत नमाज़ की।

ہستی کی معرفت کے لئے پیر کو پکڑو،
مرشد کی عقیدت ہے عقیدت نماز کی۔

हस्ती की मार्फ़त के लिए पीर को पकड़ो,
मुर्शिद की अक़ीदत है अक़ीदत नमाज़ की।

دربار میں آئے ہو تو ہستی لٹا کے دیکھ،
انکے کرم سے پائے گا دولت نماز کی۔

दरबार में आये हो तो हस्ती लूटा के देख,
उनके करम से पायेगा दौलत नमाज़ की।

اوقات میری کیا ہے کہ میں شعر سناؤں،
یہ بھی ہے ائے نادان کرامت نماز کی۔

औक़ात मेरी क्या है कि मैं शेर सुनाऊँ,
ये भी है ऐ नादान करामत नमाज़ की।

برباد مجھے کرنا ہے کردے مجھے برباد،
لیکن نہ سہہ سکے گا تو ذلّت نماز کی۔

बर्बाद मुझे करना है करदे मुझे बर्बाद,
लेकिन ना सह सकेगा तू ज़िल्लत नमाज़ की।

میں ذکر ہوں کریگا حفاظت خدا میری،
میری محافظت ہے حفاظت نماز کی۔

मैं ज़िक्र हूँ करेगा हिफाज़त ख़ुदा मेरी,
मेरी मुहाफिज़त है हिफाज़त नमाज़ की।

بغیر حق پرستی کے کچھ مل نہیں سکتا،
شریعت نماز کی نہ طریقت نماز کی۔

बेग़ैर हक़ परस्ती के कुछ मिल नहीं सकता,
शरीअत नमाज़ की ना तरीक़त नमाज़ की।

افضلیہ سلسلے پہ نہ الزام لگانا،
معراؔج سے نہ کرنا شکایت نماز کی۔

अफ़ज़लिया सिलसिले पे ना इलज़ाम लगाना,
“मेराज” से ना करना शिकायत नमाज़ की।

کلام :- معراؔج افضلی
پیشکش :- مرکزِ افضلیہ ایجوکیشن ٹرسٹ

कलाम :- मेराज अफ़ज़ली
पेशकश :- मरकज़ ए अफ़ज़लिया ऐजुकेशन ट्रस्ट

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Namaz Ki Haqeeqat | Ek Marfati Nazm | By Meraj Afzaly | Nazm Meraj Afzaly

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