Kunde Ki Niyaz 2023 | Kunde Ki Niyaz Ki Haqeeqat | 22 Rajab Ki Haqeeqat

 ★★ کونڈے کی نیاز کی حقیقت ★★

22 رجب المرجب امام جعفر صادق علیہ السلام کی نیاز۔

ہجری 122 رجب کی 22 تاریخ کی رات، یعنی 21 کا دن گزار کر 22 کی رات بوقت نمازِ تہجد،
اللہ تعالیٰ نے سیدنا امام جعفر صادق علیہ السلام کو مقامِ غوثیت کبریٰ عطا فرمایا۔

صبح 22 رجب کو آپ نے اللہ تعالیٰ کی جانب سے یہ عظیم نعمت ملنے پر بطور شکر ادا کرنے کے لئے نیاز کروائی، جو دودھ اور چاول ملاکر بنائی گئی جسے ہم خیر کہتے ہیں۔

آپؑ خاندان رسول صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم کے چشم و چراغ تھے۔
آپکے گھر میں ٹوٹی چٹائی اور مٹی کے برتن ہی تھے اسی پر آپ شاکر و صابر تھے۔ آپ نے مٹی کے پیالے میں نیاز رکھ کر اپنے دوست و احباب کو بلا کر فرمایا کہ : آج رات اللہ تعالیٰ نے مجھے مقامِ غوثیت کبریٰ عطا فرمایا ہے، اسی کا شکر ادا کرتے ہوئے یہ نیاز آپ لوگوں کو پیش کرتا ہوں۔

آپکے صاحب زادے امام موسیٰ کاظم علیہ السلام اور آپ کے دیگر مصاحبین نے پوچھا کہ : اس میں ہمارے لئے کیا فائدہ ہے۔؟؟

آپ نے فرمایا کہ : رب کعبہ کی قسم اللہ تعالیٰ نے جو نعمت مجھے عطا فرمائی ہے جس کا میں شکر ادا کرتا ہوں نیاز کی شکل میں، اسی طرح اسی تاریخ میں جو بھی شکر ادا کریگا اور ہمارے وسیلے سے دعا مانگے گا تو اللہ تعالیٰ اسکی مراد ضرور پورا فرمائے گا اور دعا ضرور قبول ہوگی،
کیونکہ اللہ تعالیٰ اپنے شکر گزار بندوں کو مایوس نہیں کرتا۔

امام جعفر صادق علیہ السلام کے پرپوتے سیدنا امام حسن عسکری علیہ السّلام سے کچھ دشمن اہل بیتؑ نے سوال کیا کہ : ”جب ہمارے گھر میں پیتل ، تانبے کی بہترین برتن موجود ہے تو مٹی کے کنڈوں کی کیا ضرورت ہے؟؟“

آپ نے فرمایا کہ : ہمارے نانا جان محمد رسول الله صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم کی سنت ہے مٹی کے برتن میں کھانا۔
آج مسلمانوں نے ہمارے نانا جان کی سنت کو ترک کر دیا ہے۔
ہم نے اس نیاز کو مٹی کے پیالوں میں اس لئے ضروری قرار دیا تاکہ کم سے کم سال میں ایک مرتبہ ہی نانا جان کی اُمت مٹی کے کنڈوں میں نیاز کھا کر سنت رسول صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم ادا کرے۔

نوٹ :– کونڈے کا نیاز 22 رجب المرجب کو ہی کریں۔22 رجب نہ ہی آپ کے وصال کی تاریخ ہے اور نہ ہی ولادت کی تاریخ ہے۔ بلکہ اس دن آپ کو ”مقامِ غوثیت کبریٰ“ عطا کی گئی تھی اسی خوشی میں ہم یہ نیاز کرتے ہیں۔

📚 حوالہ جات :

📕 منہاج الصالحین
✍🏻 سیدنا امام محی الدین ابن ابو بکر بغداد

📕 کشف الاسرار
✍🏻 سیدنا امام عبد اللہ بن علی اصفہانی

📕 مدام اسرار اہل بیت
✍🏻 سیدنا امام محمد بن اسماعیل متقی

📕 مخزنِ انوارِ ولایت
✍🏻 سیدنا امام برہن الدین عسقلانی

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★ कुंडे की नियाज़ की हक़ीक़त ★

22 रज्जब उल मुरज्जब इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम की नियाज़।
हिजरी 122 रज्जब की 22 तारीख़ की रात यानी 21 का दिन गुज़ार कर 22 की रात बा वक़्त ए नमाज़ ए तहज्जुद अल्लाह तआला ने सैय्यदना इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम को मक़ाम ए ग़ौसियत ए कुब्रा अता फरमाया। सुबह 22 रज्जब को आपने अल्लाह तआला की जानिब से ये अज़ीम नेमत मिलने पर बतौर ए शुक्र अदा करने के लिए नियाज़ करवाई जो दूध और चावल मिलाकर बनाई गई जिसे हम खीर कहते हैं।
सैय्यदना इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ख़ानदान ए रसूल (स.अ.व.व) के चश्म ओ चिराग़ थे, आप के घर में टूटी चटाई और मिट्टी के बर्तन ही थे इसी पर आप शाकिर ओ साबिर थे, आप ने मिट्टी के पियाले में नियाज़ रख कर अपने दोस्त ओ अहबाब को बुला कर फरमाया कि आज रात अल्लाह तआला ने मुझे मक़ाम ए ग़ौसियत ए कुब्रा अता फ़रमाया है इसी का शुक्र अदा करते हुए ये नियाज़ आप लोगों को पेश करता हूं।
आपके शाहब ज़ादे इमाम मूसा क़ाज़िम अलैहिस्सलाम और आप के दीगर मुसाहेबीन ने पूछा कि इस में हमारे लिए क्या फायदा है?
आप ने फरमाया कि रब्बे काबा की कसम अल्लाह तआला ने जो नेमत मुझे अता फरमाई है जिस का मैं शुक्र अदा करता हूं नियाज़ की शक्ल में इसी तरह इसी तारीख में जो भी शुक्र अदा करेगा और हमारे वसीले से जो दुआ मांगेगा तो अल्लाह तआला उसकी मुराद ज़रूर पूरा फरमाएगा और दुआ ज़रूर कबूल होगी क्योंकि अल्लाह तआला अपने शुक्र गुज़ार बन्दों को मायूस नहीं करता।
इमाम ज़ाफर सादिक़ अलैहिस्सलाम के परपोते सैय्यदना इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम से कुछ दुश्मन ए अहले बैत ने सवाल किया कि “जब हमारे घर में पीतल तांबे के बेहतरीन बर्तन मौजूद है तो मिट्टी के कुंडो की क्या ज़रूरत है?”
आप ने फरमाया हमारे नाना जान मोहम्मद रसूल अल्लाह (स.अ.व.व) की सुन्नत है मिट्टी के बर्तन में खाना।
आज मुसलमानों ने हमारे नाना जान की सुन्नत को तर्क कर दिया है हम ने इस नियाज़ को मिट्टी के पियालों में इस लिए ज़रूरी करार दिया ताकि कम से कम साल में एक मर्तबा ही नाना जान की उम्मत मिट्टी के कुंडो में नियाज़ खाकर सुन्नत ए रसूल अल्लाह (स.अ.व.व) अदा करें।
नोट :- कुंडे का फातिहा 22 रज्जब उल मुरज्जब को ही करें। 22 रज्जब ना ही आप के विशाल की तारीख़ है और ना ही विलादत की तारीख है, बल्कि इस दिन आपको मक़ाम ए ग़ौसियत ए कुब्रा अता की गई थी इसी खुशी में हम ये नियाज़ करते हैं।

~~ रेफरेंस ~~
ये ऊपर लिखी बात इन किताबों से साबित है।
📚 मिन्हाज उस सालेहीन।
✍️ सैयदना इमाम मोहि उद्दीन इब्ने अबू बकर बगदाद।
📚 कशफुल असरार।
✍️सैयदना इमाम अब्दुल्लाह बिन अली अस्फाहनी।
📚 मदाम ए असरार अहले बैत।
✍️ सैयदना इमाम मोहम्मद बिन इस्माईल मुतक्की।
📚 मखजन ए अनवार ए विलायत।
✍️ सैयदना इमाम बरहन उद्दीन अस्कलनी।
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